मैं तकरीबन 20 साल के बाद अपने शहर लौटा था! बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें सब्जी का ठेला लगाये एक बूढे पर जा टिकीं, बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था !
लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ !
मेरी उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था !
काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई !
इसकी एक बहुत बड़ी आटा मिल हुआ करती थी नौकर चाकर आगे पीछे घूमा करते थे ! धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस दानवीर पुरुष को मैं ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और
आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर?
मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया?"
भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर दिया:-
"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा".
उन महानुभाव ने अपनी बात कह दी थी अब सोचने की बारी हमारी है जिन्होंने हमें खुशनुमा जीवन दिया क्या उनको हम सुकून भरी मौत भी नही दे सकते?