जात पात माननी चाहिए या नही, क्या आज के दौर में ये प्रासंगिक है? क्या ये उचित है, क्या इन सब में कुछ फायदा है? यदि माननी चाहिए तो क्यों? और अगर नही माननी चाहिए तो क्यों? यदि नहीं माननी चाहिए तो क्या हमारे पूर्वज गलत थे?
जात पात मानाने में कोई बुराई नही है। बस आधार उसका कर्म होना चाहिए जन्म नही।
एक व्यक्ति जो भगवान् का भक्त है गलत काम नही करता और गलत नीति नही अपनाता। मांस मदिरा का सेवन तो उसको कैसे मैं क्षुद्र समझ लूँ और यदि कोई ब्राह्मण का बेटा मांस खाए जुआ खेले तो मैं कैसे उसके साथ एक थाली में खाना खा लूँ?
तो मेरा मत तो यही है व्यक्ति की सोच और उसका आचरण आधार हो उसकी जाती का और उस जाती को हम माने और अपनी संगत सुधारे।
ये सब एसे प्रश्न है की इनके बारे में विद्वानों, बुद्धिजीविओं कुछ स्वयं कथित बुद्धिजीविओं, कुछ भुक्तभोगियों, युवाओं बुजुर्गो सभी के अपने अपने विचार और तर्क हैं, कुछ तर्क समझ में आते हैं तो कुछ नही आते, कुछ हमारे विचारो को बदल देने वाले होते हैं और कुछ तो दिमाग में ही नहीं घुसते|
बहुत से लोगो के विचार कुछ लोग जो निम्न माने वाली जात से जुड़े थे कुछ ऊँची जात वाले कुछ समर्थक तो कुछ विरोधी एसे कई लोगो से मिलने उनसे बात चीत करने उनकी राय जानने और अपनी राय पर उनकी प्रतिक्रिया का विश्लेषण करेने के बाद मेरी अपनी कुछ सोच परिपक्व हुई है वही यहाँ लिख रहा हूँ.....