आँखे भी खुली हो और दिखे भी कुछ नही


आँखे भी खुली हो और दिखे भी सब कुछ

हे भगवान् तूने मुझे आँखे दी, बहुत उपकार है तेरा,
काश..., तू क्या देखना है इसकी समझ भी दे देता|
दिन भर में पचासों चीजें दिखाता है तू कई घटनाएँ दिखा देता है अब बस ये समझ भी दे दे की अपने स्मृति में इनमे से क्या संभालना है?
अब ये शक्ति दे की भाई भाई में झगडे की बजाय उनका प्यार दिखाई दे,
माँ को उल्टा जवाब देने वाले बेटे की बजाय माँ का कहा सर आँखों पर रखने वाला बेटा दिखाई दे,
पिता की बात नही मानाने वाले बेटे की बजाय पिता की सेवा करने वाला बेटा दिखाई दे’
चाचा-चाची के पैर छूने वाला भतीजा दिखाई दे,
अब तू दादा दादी के पैर दबाने वाला पोता दिखा|
ऐसी सब बातों के लिए आँखे भी खोल, दिखा भी, समझा भी, जीवन में ला भी|

और मेरी छोटी सी दुनिया में चीज़ ही ऐसी रख जो देखने लायक हों, और न देखने लायक चीजों जैसे लड़ाई- झगडा, मारपीट, गुंडा गर्दी, बड़ो की बात नही मानना, चोरी, व्यभिचार, लोभ, पाप, उदंडता, कुटिलता, मक्कारी, आदि को मेरे जीवन से हटा दे और कभी देखने का मौका पड़ता भी है तो मेरी आँखे भी खुली हो और दिखे भी कुछ नही