क्या सच में पढना जरुरी है?
और हा तो नैतिक पढाई या शेक्षणिक?
जिताने वाली या दुसरो को हराने वाली?
खुद को आगे करने वाली या दुसरो को पछाड़ने ने वाली?
क्या सच में पढाई जरुरी है??
क्या सच में पढना जरुरी है?
और हा तो नैतिक पढाई या शेक्षणिक?
जिताने वाली या दुसरो को हराने वाली?
खुद को आगे करने वाली या दुसरो को पछाड़ने ने वाली?
क्या सच में पढाई जरुरी है??
यदि आपमें से कोई एसा होगा जो भारत के विकास के लिए या भारत के राजनेता को भ्रष्टाचार के लिए कोसता नही है तो ये चिठ्ठा आपके लिए नही है, पर यदि आप एसा करते है तो फिर आप आम इन्सान है,
पर आपको भ्रष्टाचार को कोसने का कोई अधिकार नही है क्युकी भारत में सबसे ज्यादा बिकाऊ और भ्रष्ट यहां की जनता है आम आदमी है जो बिना मोलभाव के बिक जाता है, दारू की सिर्फ एक बोतल काफी है जिसे खरीदने के लिए।
आज सभी राजनैतिक दल सुचना के कानून के विरोध में एक साथ खड़े हो गए है। उन्हें सुचना के अधिकार के अंतर्गत लाना चाहिए या नही यह तो कठिन प्रश्न है।पर एक अपराधी को चुनाव लड़ने से रोकना भी गलत है?
भारत के लिए एक उभरता हुआ नकारात्मक पहलू यह का लोकतंत्र है क्युकी इसमें हमने जनता को सारी ताकत दे रखी है जोकि बेवकूफ है। जो चाहती है की उसके घर की बहु बेटी का बलात्कार हो, अगर उसके घर किसी की हत्या नही हो तो उसे चैन की नींद नही आएगी।
अगर मै गलत होता तो आज किसी राजनैतिक दल की सर्वोच्य न्यायालय के निर्णय के विरोध करने की हिम्मत नही होती जिसमे उन्होंने सिर्फ बलात्कारी और हत्यारे को चुनाव लड़ने से रोक है, या फिर जनता उन राजनैतिक दलों को सबक सिखा देगी।
अब जनता को चुनना है की बेवकूफ कौन है।