छोटा सा सम्मान

ये कहानी इक ऐसे व्यक्ति की है
जो एक फ्रीजर प्लांट में काम करता था ।
वह दिन का अंतिम समय था व् सभी घर जाने
को तैयार थे तभी प्लांट में एक
तकनीकी समस्या उत्पन्न
हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया ।
जब तक वह कार्य पूरा करता तब तक अत्यधिक देर
हो गयी ।
दरवाजे सील हो चुके थे व्
लाईटें बुझा दी गईं ।
बिना हवा व् प्रकाश के
पूरी रात आइस प्लांट में फसें रहने
के कारण
उसकी बर्फीली कब्रगाह
बनना तय था ।
घण्टे बीत गए तभी उसने
किसी को दरवाजा खोलते पाया ।...
क्या यह इक चमत्कार था ?
सिक्यूरिटी गार्ड टोर्च लिए खड़ा था व् उसने उसे
बाहर निकलने में मदद की। वापस आते समय उस
व्यक्ति ने सेक्युर्टी गार्ड से पूछा "आपको कैसे
पता चला कि मै भीतर हूँ ?" गार्ड ने उत्तर दिया "
सर, इस प्लांट में 50 लोग कार्य करते हैँ पर सिर्फ एक आप हैँ
जो सुबह मुझे नमस्कार व् शाम को जाते समय फिर मिलेंगे कहते हैँ ।
आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम
को आप बाहर नही गए । इससे मुझे शंका हुई और
मैं देखने चला आया ।
वह
व्यक्ति नही जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान
देना कभी उसका जीवन बचाएगा ।
याद रखेँ, जब भी आप किसी से मिलते
हैं तो उसका गर्मजोश मुस्कुराहट के साथ सम्मान करें । हमें
नहीं पता पर हो सकता है कि ये आपके
जीवन में भी चमत्कार दिखा दे ।
कॉपी पेस्ट हैं अच्छा लगे तो आगे बढ़ाये

आँखे भी खुली हो और दिखे भी कुछ नही


आँखे भी खुली हो और दिखे भी सब कुछ

हे भगवान् तूने मुझे आँखे दी, बहुत उपकार है तेरा,
काश..., तू क्या देखना है इसकी समझ भी दे देता|
दिन भर में पचासों चीजें दिखाता है तू कई घटनाएँ दिखा देता है अब बस ये समझ भी दे दे की अपने स्मृति में इनमे से क्या संभालना है?
अब ये शक्ति दे की भाई भाई में झगडे की बजाय उनका प्यार दिखाई दे,
माँ को उल्टा जवाब देने वाले बेटे की बजाय माँ का कहा सर आँखों पर रखने वाला बेटा दिखाई दे,
पिता की बात नही मानाने वाले बेटे की बजाय पिता की सेवा करने वाला बेटा दिखाई दे’
चाचा-चाची के पैर छूने वाला भतीजा दिखाई दे,
अब तू दादा दादी के पैर दबाने वाला पोता दिखा|
ऐसी सब बातों के लिए आँखे भी खोल, दिखा भी, समझा भी, जीवन में ला भी|

और मेरी छोटी सी दुनिया में चीज़ ही ऐसी रख जो देखने लायक हों, और न देखने लायक चीजों जैसे लड़ाई- झगडा, मारपीट, गुंडा गर्दी, बड़ो की बात नही मानना, चोरी, व्यभिचार, लोभ, पाप, उदंडता, कुटिलता, मक्कारी, आदि को मेरे जीवन से हटा दे और कभी देखने का मौका पड़ता भी है तो मेरी आँखे भी खुली हो और दिखे भी कुछ नही

जात पात और छुआछुत

जात पात माननी चाहिए या नही, क्या आज के दौर में ये प्रासंगिक है? क्या ये उचित है, क्या इन सब में कुछ फायदा है? यदि माननी चाहिए तो क्यों? और अगर नही माननी चाहिए तो क्यों? यदि नहीं माननी चाहिए तो क्या हमारे पूर्वज गलत थे?

ये सब एसे प्रश्न है की इनके बारे में विद्वानों, बुद्धिजीविओं कुछ स्वयं कथित बुद्धिजीविओं, कुछ भुक्तभोगियों, युवाओं बुजुर्गो सभी के अपने अपने विचार और तर्क हैं, कुछ तर्क समझ में आते हैं तो कुछ नही आते, कुछ हमारे विचारो को बदल देने वाले होते हैं और कुछ तो दिमाग में ही नहीं घुसते|

बहुत से लोगो के विचार कुछ लोग जो निम्न माने वाली जात से जुड़े थे कुछ ऊँची जात वाले कुछ समर्थक तो कुछ विरोधी एसे कई लोगो से मिलने उनसे बात चीत करने उनकी राय जानने और अपनी राय पर उनकी प्रतिक्रिया का विश्लेषण करेने के बाद मेरी अपनी कुछ सोच परिपक्व हुई है वही यहाँ लिख रहा हूँ.....
जात पात मानाने में कोई बुराई नही है। बस आधार उसका कर्म होना चाहिए जन्म नही। एक व्यक्ति जो भगवान् का भक्त है गलत काम नही करता और गलत नीति नही अपनाता। मांस मदिरा का सेवन तो उसको कैसे मैं क्षुद्र समझ लूँ और यदि कोई ब्राह्मण का बेटा मांस खाए जुआ खेले तो मैं कैसे उसके साथ एक थाली में खाना खा लूँ? तो मेरा मत तो यही है व्यक्ति की सोच और उसका आचरण आधार हो उसकी जाती का और उस जाती को हम माने और अपनी संगत सुधारे।

महामहिम कहलाने का अधिकार नही

सारे जग में हिन्द का डंका, बड़े सूरमा डोल गए,
देखो तो जय हिन्द का नारा ओबामा तक बोल गए,

अम्बर में लहराए तिरंगा, धरती पर पग ध्वनियाँ थीं,
राष्ट्रगीत की सुर लहरी थी, दंग देखती दुनिया थी,

जिस पल सब दे रहे सलामी, द्रश्य अजीब दिखाए थे,
महामहिम उप राष्ट्रपती ने पीछे हाथ छुपाये थे,

कूल्हो से मस्तक तक केवल कुछ फुट की ही दूरी थी,
नही सलामी दे पाए वो ऐसी क्या मजबूरी थी,

आस पास जो खड़े हुए थे, वो सब हाथ उठाये थे,
सबका साथ निभाने में क्यों महामहिम घबराये थे,

10 लोगों के साथ कहो में अल्ला अकबर चिल्लाऊं,
अगर पडोसी राम राम बोले तो मैं भी दोहराऊँ,

दिल से नही सही पर सबका दिल रखने को कर लेते,
मज़हब वाली आँखों में कुछ राष्ट्रप्रेम भी भर लेते,

देश भक्ति के गीतों को सुन दिल में जोश जगा लेते,
कुछ पल के ही लिए सही पर थोडा हाथ उठा लेते,

लेकिन तुमसे नही हुआ ये, हमको अच्छा नही लगा,
वतनपरस्ती का ये ज़ज्बा हमको सच्चा नही लगा,

कब तक हम इस तंग नज़रिए पर यूँ ही रो पायेंगे,
कितने और मुसल्मा, फिर अब्दुल कलाम हो पायेंगे,

इक हमीद था जिसकी वतनपरस्ती अब तक पुजती है
इक हामिद हैं,जिन्हें शर्म जय हिन्द बोलकर लगती है,

नही झुका सर जिनका, आज तिरंगा ध्वजा फहरने पर,
नही झुकेगा अमर तिरंगा उन लोगों के मरने पर,

जिसे तिरंगे की महिमा पर झुकना तक स्वीकार नहीं,
महामहिम कहलाने का उस नेता को अधिकार नही,

वो एक माँ थी

आधी रात को बहुत बारिश
हो रही थी।
अजय और उसकी बिवी प्रिया एक मित्र
के यहाँ पार्टी मनाकर अपने गाडी से
घर वापस लौट रहे थे।
काफी रात हो चुकी थी ।और
बारिश
की वजह से अजय बहुत
धीमी गती से
गाड़ी चला रहा था।
तभी अचानक बिजली गीर गई।
बिजली के
रोशनी मे अजय को गाड़ी के सामने कुछ
दिखाई दिया
तो उसने गाड़ी रोक दी।गाड़ी रुक ने
पर उसकी बिवी ने
कहा क्या हूवा गाड़ी क्यों रोक दी?
अजय ने आगे कि ओर इशारा किया।
प्रिया ने आगे देखा तो वो डर गयी।
क्यों की
गाड़ी के सामने एक औरत
खड़ी थी।
वो औरत गाड़ी के पास आयी।
और हाथ से गाड़ी का शीशा नीचे
करने
का इशारा करने लगी।
अजय
की बीवी प्रिया काफी डर
गयी थी।
उसने अजय को गाडी चलाने को कहा।
लेकिन गाड़ी भी स्टार्ट
नही हुईं।
गाड़ी के बाहर खडी औरत बारिश
की वजह
भीग गयी थी। वो हाथ जोडकर
गाड़ी का शिशा निचे करने
का इशारा कर रही थी।
अजय को लगा कि वो औरत किसी मुसीबत
मे
है। इसलिए उसने गाड़ी का शिशा निचे
किया।
वो औरत हाथ जोडकर बोली 'भाई साहब
मेरी मदत किजीऐ।
तेज बारिश कि वजह से मेरे
गाड़ी का अॅक्सीटेंड हुआ है।
मेरी गाड़ी रस्ते के निचे गीर
गयी है।
उसमें मेरा छोटा बच्चा है।प्लिज
उसे बचाईये।
अजय गाड़ी से उतरा और उस औरत के
पिछे गया।
उस औरत की गाड़ी रस्ते के
काफी निचे
गिर गयी थी।
अजय निचे उतरकर उस गाडी मे से
रो रहे उसके बच्चे को बाहर निकाला।
फिर अजय को लगा की ड्रायवर
की सीट पर
भी कोई है।जब अजय ने ड्रायव्हर
की सीट पर देखा तो उसके होश उड गये।
क्योंकी ड्रायव्हर के सीट पर
वही औरत खून से लथपत
मरी पडी थी।
अजय को अब सब समझ मे आया।
वो बच्चे को लेकर अपने गाड़ी के पास
आया।
बच्चे अपने बीवी प्रिया के पास
दिया।
उसकी बीवी बोली 'वो औरत
कहा है?'वह
कौन थीं? '
अजय बोला
.
.
.
'वो एक माँ थी।'

मातृभाषा का सम्मान

दोस्तों ओबामा ने हिन्दी मे नमस्ते किया, इसपर आपको एक किस्सा सुनाता हूँ ******:

स्वामी विवेकानंद जी भाषण देने के लिये अमेरिका गये.
संचालक हाथ आगे बढ़ाते हुए बोले: हेलो..
तो विवेकानंद जी ने, हाथ जोड़कर नमस्ते की...

संचालक को लगा की शायद इन्हे इंग्लीश नही आती तो बोले: नमस्ते, सर कैसे हैं आप?
तो विवेकानंद जी बोले: आइ अम फाइन, थॅंक यू.....

संचालक चकरा गया ओर पूछने लगा की जब मैने इंस्लिश मे बात की तो आपने हिन्दी मे जवाब दिया ओर जब मैने हिन्दी मे तो आपने इंग्लीश मे जवाब दिया, ऐसा क्यों.. ?? तो

विवेकानंद जी बोले: जब आपने अपनी मातृ भाषा का सम्मान किया तो मैने अपनी मातृ भाषा का सम्मान किया ओर जब आपने मेरी मातृ भाषा का सम्मान किया तो मैने आपकी मातृ भाषा का सम्मान किया......

जय हिन्द... वन्देमातरम...

चतुरता

भारतीय स्वदेश प्रेम की चतुरता का एक उम्दा वाकया....

एक बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को ले कर चर्चा चल रही थी ।

एक भारतीय प्रवक्ता बोलने के लिए खडा हुआ और अपना पक्ष रखने से पहले एक बहुत पुरानी कश्यप ऋषि की कहानी सुनाने के लिए कहा

"एक बार महर्षि कश्यप घूमते घूमते कश्मीर पहुंचे जिनके नाम पर आज कश्मीर नाम पड़ा है ।
वहा उन्होंने एक सुन्दर झील देखी तो उस झील में उनका नहाने का मन किया ।
उन्होंने अपने कपड़े उतारे और झील में नहाने चले गए ।

जब वो नहान कर बाहर निकले तो उनके कपडे वहा मौजूद नहीं थे । उनके कपडे किसी पाकिस्तानी ने चुरा लिये थे ।"

इतने में पाकिस्तानी प्रवक्ता चिख और बोला
"क्या बोल रहे हो ? उस समय पाकिस्तान नहीं बना था ।"

भारतीय प्रवक्ता मुस्कुराया और बोला
" अब सब कुछ साफ़ हो चुका है । अब में अपना भाषण शुरू करना चाहता हूँ ।"
"और ये पाकिस्तानी कहते है की कश्मीर इनका है ।"

पुरा संयुक्त राष्ट्र सभा में ठहाकों के गूंज से भर गया ।।

एक हिन्दुस्तानी होने के नाते ये मुझे बहुत पसंद आया ।

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जिसका राष्ट्रपिता नामर्द गाँधी है

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जिसका प्रधानमंत्री काम नेताजी जैसा करता है और नाम नामर्द गाँधी का लेता है ।

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जिस देश में नामर्द गाँधी के 150 साल होने पर शोक दिवस मानाने की बात होती है।

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जहाँ नेताजी को प्रधानमंत्री एक ट्वीट कर के भुला देगा।

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जहाँ नेताजी का इतिहास  मिटाया जा रहा है ।

शर्म है मुझे उस देश का नागरिक होने पर जहाँ नामर्द गाँधी को बढ़ावा देने के लिए नेताजी को दबाया जा रहा है।

आज आप सबसे एक निवेदन आज से गाँधी नाम के पहले नामर्द घटिया चुतिया इस प्रकार के विशेषण का प्रयोग अवश्य करें।

बाज का पुनर्स्थापन

बाज लगभग ७० वर्ष जीता है,
परन्तु अपने
जीवन के ४०वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है।

उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं-

पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व
शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं।

चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है।

पंख भारी हो जाते हैं,
और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते
हैं।

भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं।

उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे,
या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह
त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे...

या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करे,
आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।

जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं,
वहीं तीसरा अत्यन्त
पीड़ादायी और लम्बा।

बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है।

वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है,
एकान्त में अपना घोंसला बनाता है, और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया।

सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है..
अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के
लिये। तब वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने की।

उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने
की।
नये चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।

१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा...
और तब उसे
मिलती है वही भव्य और
ऊँची उड़ान, पहले
जैसी नयी।

इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है,
ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।

प्रकृति हमें सिखाने बैठी है-
पंजे पकड़ के प्रतीक हैं, चोंच सक्रियता की, और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं।
इच्छा परिस्थितियों पर
नियन्त्रण बनाये रखने की,
सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की,
कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने
की।

इच्छा, सक्रियता और कल्पना,
तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं,
हममें भी, चालीस तक आते आते।

हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने
लगता है, अर्धजीवन में
ही जीवन समाप्तप्राय सा लगने लगता है,
उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा अधोगामी हो जाते हैं।

हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं-
कुछ सरल और त्वरित,
कुछ पीड़ादायी।

हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे
अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा-बाज के पंजों की तरह।

हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र
मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित
सक्रियता दिखानी होगी-बाज की चोंच की तरह।

हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के
भारीपन को त्याग कर
कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने
भरनी होंगी-बाज के
पंखों की तरह।

१५० दिन न सही, तो एक माह
ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही,
बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।

धर्म के नाम पर हत्या

अगर तुम्हारा धर्म तुम्हे हिंसा और हत्या के लिए प्रेरित करता है,

तो शुरुआत खुद से करो

माँ

एक बार एक शहरी परिवार मेले मेँ घुमने
गया, मेले मेँ 1 घंटे तक घुमे
कि अचानक उनका बेटा मेले मेँ
खो गया,
दोनो पति-पत्नी ने मेले मेँ बहुत ढ़ुढ़ते
है, लेकिन लङका नही मिलता है,
लङके कि माँ जोर-जोर से रोने
लगती है, बाद मेँ पुलिस को सुचना देते
है,
आधे घण्टे बाद लङका मिल जाता है,
लङके के मिलते ही उसका पति गाँव
का टिकिट लेकर आता है,और वो सब बस
मेँ बेठ कर गाँव रवाना हो जाते है,
तभी पत्नी ने पुछा: हम गाँव
क्यो जा रहे है, अपने घर नही जाना है
क्या...?
तभी उसका पति बोला:"तु तेरी औलाद
के बिना आधा घण्टा नही Rah
सकती,तो मेरी माँ गाँव मेँ पिछले 10
साल से मेरे बिना कैसे
जी रही होगी..??