काश.....

जब मालूम है कोई चीज़ आपको बहुत पसंद हो, आपके आजू बाजु वाले सब के पास हो और वो आपको ना मिलने वाली हो तो किसी से बात करने का मन नही करता, चिडचिडापन आ जाता है, किसी का गुस्सा की और पर निकलता है, सब सुना सुना लगता है, सभी से जलन होती है, कोई अपना है ही नही ऐसा लगता है, सब स्वार्थी लगते है, आत्मविश्वास की धज्जियाँ उड़ जाती है, और जिस किसी के पास वो चीज़ हो वो दुश्मन लगता है।

कुछ ऐसा ही हाल है मेरा ।
मेरे जिंदगी में एक ही काश है काश मेरी बड़ी दीदी होती।

मेरा ममेरा भाई उसके पास ये सुख है पर वो जिस तरीके से उसके साथ व्यव्हार करता है सच बताऊ तो आत्मा जल जाती है।

पर जिंदगी आपको सब कुछ नही देती।

कुछ काश जिंदगी भर काश ही रह जाते हैं।

सारी दुनिया को मैं देंगा दिखाऊ

मुझे एक बड़ी बहन चाहिए जो सिर्फ मेरी हो..

जिसके साथ मैं हंसू खेलूं
जिसको मैं छेडू
जो मुझ पर गुस्सा करें
जिसको मैं सारी  बातें बताऊ
वो मुझे ब्लैक मेल करें
फिर उसको मनाऊ
उससे अपना काम करवाऊ
बदले में रिश्वत देता जाऊ
बातें बातें करते करते
उसके गोद में सो जाऊ
वो कभी डांटे कभी प्यार से मारे
और मैं उसको देख मुस्कुराऊ
कभी कोई बात घर में ना बताने
के लिये मनाऊ
कभी तुझसे छुप के पिक्चर जाऊ
और आके तुझे बताऊ
अपने पहले क्रश के बारे में बताऊ
और तेरी मदद से उसको पटाऊँ

बस तू मिल जाये एक बार
और सारी दुनियां को मैं देंगा दिखाऊ

किस्मत

इस ज़िन्दगी में क्या नही मिला मुझे?
घर दोस्त सब जगह विशेष होने का सौभाग्य मिला।
हर छोटे से आदर और बड़े से प्यार मिला।
इतना अच्छा परिवार मिला।
अधिकतर चीज़े सोचने के पहले मिली।
और जो चाहा वो तो हमेशा मिला।
पापाजी का और बाकि सभी का विश्वास मिला।
पर फिर भी यारों एक ... एक तमन्ना अधूरी रह गई....

दीदी के जन्मदिन के कुछ पल

दीदी आज आप फिर बड़े हो गये...

आज मेरी दीदी का जन्मदिन है, तो ये चिठ्ठा उनके लिए...

युं तो आज के पहले आपके बहुत सारे जन्मदिन हो गये, कुछ साथ में भी मनाये । पर ये वाला कुछ अलग है।

इस बार अपन सिर्फ भाई बहन ना रहे इस बार इस रिश्ते में दोस्ती का तड़का लग गया था। अब की बार हममे थोडा प्यार, थोडा अपनापन, थोडी चिंता, थोडा गुस्सा, थोड़ी लड़ाई, थोडा डर और बहुत सारी मस्ती आ गई है तो बस आने वाले साल में या बचे हुए 4महीनों में आप थोडा और प्यार करो, थोडा ज्यादा ख्याल रखना,थोड़ी कम चिंता करना, मैं थोडा और गुस्सा दिलाऊंगा, अपन थोडा और लड़ेंगे मैं थोडा और डरूंगा और  मस्ती... शायद वो बताने  की जरुरत नही है।

अब सिर्फ एक feeling छुट गई है वो है जलन। अब के मैं थोडा और जलूँगा क्युकी आज फिर आप मुझसे बड़े हो गये...

अब भगतसिंह सरदार चाहिए.

यॆ बिंदिया पायल झुमका, बॊलॊ बदलाव करॆंगॆ क्या ॥
कजरा रॆ, कजरा रॆ कॆ गानॆ, मां कॆ घाव भरॆंगॆ क्या ॥
अमर शहीदॊं का शॊणित, धिक्कार रहा है पौरुष कॊ ॥
वह धॊखॆबाज़ पड़ॊसी दॆखॊ,ललकार रहा है पौरुष कॊ ॥
श्रृँगार-गीत हॊं तुम्हॆं मुबारक, मॆरी कलम कॊ अंगार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥
सब कुछ लुटा दिया, क्या उनकॊ घर-द्वार नहीं था ॥
भूल गयॆ नातॆ-रिश्तॆ, क्या उनकॊ परिवार नहीं था ॥
क्या राखी कॆ धागॆ का, उन पर अधिकार नहीं था ॥
क्या बूढ़ी माँ की आँखॊं मॆं, बॆटॊं कॊ प्यार नहीं था ॥
आज़ादी की खातिर लड़तॆ, वह सूली पर झूल गयॆ ॥
आज़ाद दॆश कॆ वासी, बलिदान उन्ही का भूल गयॆ ॥
उन अमर शहीदॊं कॊ पूरा-पूरा, संवैधानिक अधिकार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ,अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥

अब भगतसिंह सरदार चाहिए.

यॆ बिंदिया पायल झुमका, बॊलॊ बदलाव करॆंगॆ क्या ॥
कजरा रॆ, कजरा रॆ कॆ गानॆ, मां कॆ घाव भरॆंगॆ क्या ॥
अमर शहीदॊं का शॊणित, धिक्कार रहा है पौरुष कॊ ॥
वह धॊखॆबाज़ पड़ॊसी दॆखॊ,ललकार रहा है पौरुष कॊ ॥
श्रृँगार-गीत हॊं तुम्हॆं मुबारक, मॆरी कलम कॊ अंगार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥
सब कुछ लुटा दिया, क्या उनकॊ घर-द्वार नहीं था ॥
भूल गयॆ नातॆ-रिश्तॆ, क्या उनकॊ परिवार नहीं था ॥
क्या राखी कॆ धागॆ का, उन पर अधिकार नहीं था ॥
क्या बूढ़ी माँ की आँखॊं मॆं, बॆटॊं कॊ प्यार नहीं था ॥
आज़ादी की खातिर लड़तॆ, वह सूली पर झूल गयॆ ॥
आज़ाद दॆश कॆ वासी, बलिदान उन्ही का भूल गयॆ ॥
उन अमर शहीदॊं कॊ पूरा-पूरा, संवैधानिक अधिकार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ,अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥

जब मैं छोटा था...

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया

बहुत बड़ी हुआ करती थी..

मुझे याद है मेरे घर से"स्कूल" तक

का वो रास्ता , क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,

बर्फ के गोले, सब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप",

"विडियो पार्लर" हैं,

फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...
.
.
.

जब मैं छोटा था,

शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...

मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,

घंटों उड़ा करता था,

वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,

वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है

और सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

.

.

.

जब मैं छोटा था,

शायद दोस्ती

बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,

वो दोस्तों के घर का खाना,

वो लड़कियों की बातें,

वो साथ रोना...

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,

जब भी "traffic signal" पे मिलतेहैं

"Hi" हो जाती है,

और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

होली, दीवाली, जन्मदिन,

नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
.

.

जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,

छुपन छुपाई, लंगडी टांग,
पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप.

अब internet, hike, social media, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
.
.
.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...

"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
.

ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...

कल की कोई बुनियाद नहीं है

और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..

अब बच गए इस पल में..

तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त,

और इस ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त....

मौत..

किसी शायरने मौत को क्या खुब कहा है...

जिंदगी मे २ मिनट कोई मेरे पास ना बैठा, आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे....

कोई तौफाह ना मिला आज तक, और आज फुल हि फुल दिये जा रहे थे...

तरस गये थे हम किसी एक हाथ के लिये, और आज कंधे पे कंधे दिये जा रहे थे....

दो कदम साथ ना चलने को तैयार था कोई, और आज काफिला बन साथ चले जा रहे थे...

आज पता चला मुझे कि "मौत" कितनी हसिन होती है...

कम्बख्त...

हम तो युहि जिंदगी जिये जा रहे थे..

एक हिन्दू सिर्फ चुप रहना जानता है...

श्री राम का जन्म स्थान तम्बू में- हिन्दू चुप.
कैलाश मानसरोवर जाने के लिए चीन की अनुमति -
हिन्दू चुप.
कश्मीर में अलग संविधान और अलग झंडा - हिन्दू चुप.
सभी कश्मीरी पंडितो को अपनी जन्मभूमि से खदेड़
दिया गया - हिन्दू चुप.
लाखो बोडो को आसाम में अपनि जन्मभूमि से खदेड़
दिया गया - हिन्दू चुप.
वंदे मातरम की जगह जण-गण-मन(जोर्जपंचम का स्वागत
गीत) - हिन्दू चुप.
जगह जगह कत्तल खाने - हिन्दू चुप.
देश भर मुसलमानोंद्वारादंगे फसाद - हिन्दू चुप.
आदिवासियों का ईसाईयोंद्वारा धर्मपरिवर्तन -
हिन्दू चुप.
तेजोमहालय शिव मंदिर का ताजमहल कब्र रूप में -
हिन्दू चुप.
ध्रुव स्तंभ का क़ुतुब मीनार के रूप में - हिन्दू चुप.
सनातन भारत को इंडिया के नाम से जाना जाए - हिन्दू
चुप.
पाचवी पास वेटर के द्वारा देश का नियंत्रण - हिन्दू
चुप.
राम सेतू तोडने कि साजीश - हिन्दू चुप.
जाकीर नालायक, ओवैसी और मुल्लो द्वारा हिन्दू
देवी देवताओं पर कीचड़ उछालना - हिन्दू चुप.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर की जेल में
रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू
चुप.
भाई राजीव दीक्षित जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-
मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.
लाल बहादुर शास्त्री जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-
मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.
सुभाष चंद्र बोस आजादी के बाद १९८५ तक चुप कर
गुमनाम जिंदगी जीते रहे - हिन्दू चुप.
चंद्रगुप्त सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना -
हिन्दू चुप.
शिवाजी सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना -
हिन्दू चुप.
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भविष्य में :-
कश्मीर का विभाजन - ?
आसाम का विभाजन - ?
केरल का विभाजन - ?
हिन्दू चुप.
और कब तक चुप रहेंगे हम हिन्दू ?
जागो हिन्दुओ जागो! सेक्युलर नहीं सनातनी बनो

बदला मैं था...

आज सबेरे जब उठा तो सब बदला बदला सा नज़र आया। सूरज की किरणे एसी लग रही थी मानो मस्ती कर रही हों। रूम बिस्तर अलमारी घर गाड़ी सब कुछ बदल से गये थे, ऐसा लग रहा की एक नयी दुनिया में पहुँच गया हूं जो दिखने में तो हु बहु वैसी ही है पर यहाँ फीलिंग कुछ और ही है।

फिर मैंने बहुत सोचा की ये सब एसे क्यों हो गये? और आखिर में मैंने पाया बदले ये सब नही थे बदला मैं था मेरा नजरिया बदला था।

बदला मैं था.....

भारत में क्या है और इंडिया में क्या है

भारत में गॉंव है, गली है, चौबारा है.
इंडिया में सिटी है, मॉल है, पंचतारा है.

भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है.
इंडिया में फ्लैट और मकान है.

भारत में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है.
इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है.

भारत में खजूर है, जामुन है, आम है.
इंडिया में मैगी, पिज्जा, माजा का नकली आम है.

भारत में मटके है, दोने है, पत्तल है.
इंडिया में पोलिथीन, वाटर व वाईन की बोटल है.

भारत में गाय है, गोबर है, कंडे है.
इंडिया में सेहतनाशी चिकन बिरयानी अंडे है.

भारत में दूध है, दही है, लस्सी है.
इंडिया में खतरनाक विस्की, कोक, पेप्सी है.

भारत में रसोई है, आँगन है, तुलसी है.
इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है.

भारत में कथडी है, खटिया है, खर्राटे हैं. इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है.

भारत में मंदिर है, मंडप है, पंडाल है.
इंडिया में पब है, डिस्को है, हॉल है.

भारत में गीत है, संगीत है, रिदम है.
इंडिया में डान्स है, पॉप है, आईटम है.

भारत में बुआ है, मौसी है, बहन है.
इंडिया में सब के सब कजन है.

भारत में पीपल है, बरगद है, नीम है.
इंडिया में वाल पर पूरे सीन है.

भारत में आदर है, प्रेम है, सत्कार है.
इंडिया में स्वार्थ, नफरत है, दुत्कार है.

भारत में हजारों भाषा हैं, बोली है.
इंडिया में एक अंग्रेजी एक बडबोली है.

भारत सीधा है, सहज है, सरल है.
इंडिया धूर्त है, चालाक है, कुटिल है.

भारत में संतोष है, सुख है, चैन है.
इंडिया बदहवास, दुखी, बेचैन है.

क्योंकि …
भारत को देवों ने, वीरों ने रचाया है.
इंडिया को लालची, अंग्रेजों ने बसाया है.

कही पढ़ा है, सच है या नही ये तो नही पता। पर गलत नही है ये पता है...

मित्रों, मेरे इस आर्टिकल को सांप्रदायिक न समझ कर कृपया कॉंग्रेस सरकार की दोहरी नीति को जानें।
वोट बैंक के लिए इनके दोहरे मापदंड को समझें।

मैं आज समीकरणों की तुलना कर रहा हूँ - काश्मीर के राहत शिविरों की और मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों की।

दोनों जगह राहत शिविर लगाने का एक ही कारण था - सांप्रदायिक दंगा।

फर्क सिर्फ इतना था की काश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यक है और मुजफ्फरनगर में मुस्लिम।

मैं यहाँ हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं कर रहा।
दंगों में अगर कोई मरता है तो वो है गरीब और इंसानियत।

पर सरकार को चाहिए कि पूरे देश में हर तबके को समानता से देखा जाये और समान अधिकार दिये जाएँ।

काश्मीर के राहत शिविरों के आंकड़े इस प्रकार हैं:
22 कैंप लगे हैं जिसमें 3,50,00 जी हाँ, 3 लाख पचास हज़ार हिन्दू रहते हैं।
कोई भी नेता वहाँ देखने नहीं जाता।
मीडिया ने कभी कोई महत्व नहीं दिया इन राहत शिविरों को।
अनगिनत मौतें हो चुकी हैं इन राहत शिविरों में, कभी ठंड से तो कभी कुपोषण से।
सरकार को शौचालयों की कोई चिंता नहीं है, लोग शौच करने के लिए दूर दूर जाते हैं, महिलाओं के बलात्कार की कई सारी घटनाएँ हुई हैं इस कारण।
पर जो भी है, ये लोग अभी भी वंदे मातरम बोलते है और भारत माता के जय गान करते हैं।

मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों के आंकड़े इस प्रकार हैं:
5 कैंप लगे हैं जिसमें 4783 लोग रहते हैं।
नेताओं का जमघट लगा रहता है यहाँ, कोंग्रेसी गया तो समाजवादी आ जाता है, वो गया तो नितीश के चमचे आ जाते है, वो गया तो केजरोवाल के प्यादे पहुच जाते हैं।
मीडिया तो दिन रात यही सोता जागता हैं।
32 मौतों पर बहुत बड़ा इशू बना दिया गया, हालांकि होना भी चाहिए पर काश्मीर में राहत शिविरों में हजारों मौतों पर सब खामोश क्यूँ?
सरकार ने शौचालयों की उच्च कोटि की व्यवस्था की है, ये सही भी है, होना ही चाहिए पर काश्मीर में सरकार को कोई सरोकार क्यू नहीं राहत शिविरों में शौचालयों को लेकर।
इतना सब होने के बाद भी यहाँ के कई लोग (ये बात राहुल गांधी ने भी स्पष्ट की है)  आतंकवादी और जिहादी होना चाहते हैं।

सरकार की दोगली राजनीति क्यू हैं दो अलग अलग तबकों के लिए?

क्या कोई कोंग्रेसी जवाब देगा?