मित्रों, मेरे इस आर्टिकल को सांप्रदायिक न समझ कर कृपया कॉंग्रेस सरकार की दोहरी नीति को जानें।
वोट बैंक के लिए इनके दोहरे मापदंड को समझें।
मैं आज समीकरणों की तुलना कर रहा हूँ - काश्मीर के राहत शिविरों की और मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों की।
दोनों जगह राहत शिविर लगाने का एक ही कारण था - सांप्रदायिक दंगा।
फर्क सिर्फ इतना था की काश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यक है और मुजफ्फरनगर में मुस्लिम।
मैं यहाँ हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं कर रहा।
दंगों में अगर कोई मरता है तो वो है गरीब और इंसानियत।
पर सरकार को चाहिए कि पूरे देश में हर तबके को समानता से देखा जाये और समान अधिकार दिये जाएँ।
काश्मीर के राहत शिविरों के आंकड़े इस प्रकार हैं:
22 कैंप लगे हैं जिसमें 3,50,00 जी हाँ, 3 लाख पचास हज़ार हिन्दू रहते हैं।
कोई भी नेता वहाँ देखने नहीं जाता।
मीडिया ने कभी कोई महत्व नहीं दिया इन राहत शिविरों को।
अनगिनत मौतें हो चुकी हैं इन राहत शिविरों में, कभी ठंड से तो कभी कुपोषण से।
सरकार को शौचालयों की कोई चिंता नहीं है, लोग शौच करने के लिए दूर दूर जाते हैं, महिलाओं के बलात्कार की कई सारी घटनाएँ हुई हैं इस कारण।
पर जो भी है, ये लोग अभी भी वंदे मातरम बोलते है और भारत माता के जय गान करते हैं।
मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों के आंकड़े इस प्रकार हैं:
5 कैंप लगे हैं जिसमें 4783 लोग रहते हैं।
नेताओं का जमघट लगा रहता है यहाँ, कोंग्रेसी गया तो समाजवादी आ जाता है, वो गया तो नितीश के चमचे आ जाते है, वो गया तो केजरोवाल के प्यादे पहुच जाते हैं।
मीडिया तो दिन रात यही सोता जागता हैं।
32 मौतों पर बहुत बड़ा इशू बना दिया गया, हालांकि होना भी चाहिए पर काश्मीर में राहत शिविरों में हजारों मौतों पर सब खामोश क्यूँ?
सरकार ने शौचालयों की उच्च कोटि की व्यवस्था की है, ये सही भी है, होना ही चाहिए पर काश्मीर में सरकार को कोई सरोकार क्यू नहीं राहत शिविरों में शौचालयों को लेकर।
इतना सब होने के बाद भी यहाँ के कई लोग (ये बात राहुल गांधी ने भी स्पष्ट की है) आतंकवादी और जिहादी होना चाहते हैं।
सरकार की दोगली राजनीति क्यू हैं दो अलग अलग तबकों के लिए?
क्या कोई कोंग्रेसी जवाब देगा?
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