दिनांक-०४/१४/२०१३
घर में खाना खाते समय यदि आपकी बीबी, माँ या दीदी आपके पास बैठे तो कितना अच्छा लगता है... मुझे इस बात का अनुभव तो कई बार हुआ है, पर अहसास आज पहली बार हुआ है.
भारतीय संस्कृति में पुरुषों को व्यापर के प्रबंधन का जिम्मा दिया गया है, नारी को पुरुष को संभालने का. साथ ही साथ नारी को सुख दुःख का साथी भी खा गया है, पर वो असल जिन्दगी की सुखकर्ता और दुःखहर्ता है, उसके भी सुख दुःख होते है पर जब पुरुष के सिर्फ तभी जब पुरुष के दुःख खत्म और सुख चरम पर हो तभी. उनकी भी जिन्दगी भी होती है, वो भी व्यस्त होते पर जब भी उनका पति, बेटा या भाई खाना खा रहा हो तब नहीं. उनके पास बैठना उनका कम नही है,वो भी जब वो घर देरी से आयें. सिर्फ वो ही एक ऐसी है, जिसे अपने अधिकारों से ज्यादा स्नेह और ममता का ज्ञान है. उसने अपनी में कर्तव्य को ऐसा स्थान दे दिया है, अब हमें(पुरुषो) को वो उनका अधिकार लगने लगा है.
अंत में आज के खाने में स्वाद से ज्यादा आनंद आया. और उस अनुभव ने मेरी भूख को अनंत गुना कर दी.