जवान बिना ज़िन्दगी

दिनांक-०४/१३/२०१३
भारतमाता हमारी सब की माता है, पर ये माता हमारे साथ भेदभाव करती है, और आगे भी करेगी. मेरी सोच से तो ये सरासर भेदभाव ही है.
उसने उस पर मर मिटने का अधिकार सिर्फ अपने कुछ बच्चों को ही दिया है, और मौका तो सिर्फ गिने चुने को....
उन गिने चुने लोगो को हम सेना के जवान कहते है. उसने हमारे लिए भी बहुत से काम छोड़ा है, पर सबसे महत्वपूर्ण काम उन चंद बच्चों को दे कर उसने बहुमत को नाराज़ कर दिया.
पर ये सब के बावजूद थोड़ी समझदारी दिखाते हुए हमें ये सोचना चाहिए वो काबिलियत सिर्फ उन लोगो में ही होगी, जो किसी पर मर मिटने के बावजूद ये नही सोचते की क्या किसी को पता भी चलेगा की उसके हिफ़ाजत के लिए किसी ने अपनी जान खोई है, उन महापुरुषों को उनके जाने के बाद अपने परिवार के लिए किसी विशेष दर्जे का भी स्वार्थ नही है, और हम तो किसी को पानी भी पिलाने के बाद अहसान जताते है, शायद ये बात उस माँ को पता था की हमारी औकात इतनी है ही नही की हम ऐसा महान कम कर सके..
आज घर में पिताजी न हो तो घर की धड़कन रुक जाती है, और उन परिवारों में पिताजी कुम्भ के मेले के समान कभी-कभी आते है और वो कब चले जायेंगे ये भी किसी नही पता होता है.
और हम.. जो हमारे लिए जान देने के लिए आतुर है, उसके लिए एक शब्द कहने या उसको एक सलामी के लिए हम कितना सोचते है और उसके बाद भी हमारा अभिमान बिच में आ जाता है.
कभी कोई जवान की मृत्यु हो जाये तो हम तो उनका नाम जानने की कोशिश भी नही करते.
माना की हमारे परिवारों में परेशानिया कम नही है पर कम से कम उनका सामना करने के लिए हमारे पास कोई पिता, पति या भाई तो है पर वो घर जहाँ परेशानिया तो है पर उनका सामना करने के लिए कोई पिता, पति या भाई नही है, क्योकि वो अपने परिवार की परेशानियों को हल करने से पहले, हमारे परिवार पर आने वाली परेशानियों को रोक रहे हैं.
और हम तो उन जवानों को शुक्रिया अदा करने की काबिलियत से भी कोसों दूर है, पर हाँ हम उन शहीदों के परिवारों के लिए अपने दिल-दिमाग में इज्ज़त रख के उनको आदरांजलि दे सकते है.
आज मुझे इस बात का ध्यान रखना है की भले सरकार उन परिवारों को विशेष दर्जा न दे पर मुझे अपने दिल, दिमाग और व्यवहार में उनको हमेशा विशेष दर्जा देना है.