दो दिन पहले रात को लगभग 10-11 बजे, मुझे मेरी मामा की बेटी रिद्धि जी का फोन आया था। वे मुझसे तीन महीने बड़ी हैं, फिर भी मैं उन्हें दीदी ही कहता हूँ।
इस बार मुझे राखियाँ तो बहुत सी बहनों ने भेजीं। सुदेशना और मुस्कान ने भी, रिद्धि-सिद्धि जी ने भी और गुड्डन जीजी ने भी, पर रिद्धि दीदी का फोन आया। गुड्डन जीजी ने भी फोन करके पूछा था कि राखी मिल गई क्या, लेकिन रिद्धि दीदी ने फोन करके मेरा हालचाल पूछा, "तू कैसा है?", "राखी बंधवा लिया क्या?" और इधर-उधर की बहुत सारी बातें कीं।
इन पाँचों बहनों में से मेरे लिए सबसे ख़ास दीदी ही हैं। लगभग ढाई-तीन साल मैं उनके साथ रहा हूँ, और शायद ही कभी हमारा झगड़ा हुआ हो। वह मेरे साथ एक बड़ी बहन की तरह रहीं, पर हमारे रिश्ते में वात्सल्य से ज़्यादा दोस्ती थी। उनके साथ रहने में बहुत मज़ा आता था। मेरी बहुत सारी ऐसी भावनाएँ और बातें हैं जो सिर्फ़ उन्हीं को पता हैं।
उस दिन उनसे बात करके बहुत अच्छा लगा। अब साल में सिर्फ़ दो-तीन बार ही बात हो पाती है, फिर भी वह उन गिने-चुने लोगों में से हैं जिनसे बात करके मुझे हमेशा अच्छा लगता है।
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